सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज नथमलपति वेंकट रमना रमना देश के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) हो सकते हैं। मौजूदा प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस रमना के नाम की सिफारिश की है। बता दें कि सीजेआई बोबड़े 23 अप्रैल को रिटायर हो रहे हैं। नियम के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठतम जज को सीजेआई नियुक्त किया जाता है।
बता दें कि आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पुन्नावरम गांव में किसानों के एक विनम्र परिवार में जन्मे रमना ने 10 फरवरी 1983 को वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। एक छात्र नेता बनकर एक शैक्षणिक वर्ष का त्याग करते हुए 1975 में राष्ट्रव्यापी आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रता के लिए लड़ने से लेकर अगले माह भारत के 48 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालने तक न्यायमूर्ति एनवी रमना की यात्रा काफी दिलचस्प रही है।
बता दें, एक समय ऐसा भी था जब न्यायमूर्ति रमना को उनके पिता ने जून 1975 में आपातकाल के खिलाफ एक सार्वजनिक बैठक की अध्यक्षता करने के बाद शहर छोड़ने के लिए कह दिया था। जस्टिस रमना ने जनवरी में दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘मैंने देखा कि इतने सारे युवाओं ने मानवाधिकारों के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया था। ऐसे में मुझे कॉलेज के एक साल खोने का कोई पछतावा नहीं है। हालांकि, मेरे पिता को यकीन था कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा।’
1980 में एक लॉ कॉलेज में दाखिला लेने से पहले, न्यायमूर्ति रमना ने दो साल तक एक क्षेत्रीय समाचार पत्र के लिए एक पत्रकार के रूप में काम किया। उन्हें 1983 में बार में नामांकित किया गया था। एक वकील के रूप में उन्होंने संवैधानिक, आपराधिक, सेवा और अंतरराज्यीय नदी कानूनों में विशेषज्ञता हासिल की। साथ ही आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, एपी राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण और सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, श्रम, सेवा और चुनाव मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में अभ्यास किया।
उन्हें 2000 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2013 में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 17 फरवरी 2014 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। इन वर्षों में न्यायमूर्ति रमना कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा बने।
न्यायमूर्ति रमना ने कर्नाटक विधानसभा मामले में एक और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। उन्होंने विधायकों को अयोग्य ठहराने के स्पीकर के फैसले को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस्तीफा देने से स्पीकर के अधिकार खत्म नहीं हो जाते हैं। हालांकि, अयोग्यता के मामले में विधायकों को अपना पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए। कोर्ट ने अयोग्य विधायकों को राहत देते हुए उनको विधानसभा उपचुनाव लड़ने की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि विधायकों को विधानसभा के पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
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